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20 सृष्टि रचना

जिस की गति को जानना अत्यंत कठिन है- उस जीवो के प्रारब्ध, प्रकृतिके नियन्तापुरुष और काल-इन तीन हेतुओ से तथा भगवान की सन्निधि से त्रिगुणमय प्रकृति में क्षोभ होने पर उसे महतत्व उत्पन्न हुआ।12.  दैवकी प्रेरणासे रज: प्रधानमहतत्वसे वैकारिक (सात्विक), राजस और तामस- तीन प्रकार का अंहकार उत्पन्न हुआ। उसने आकाशादि पांच-पांच तत्वों के अनेक वर्ग* प्रकट किए।13. *(पंचतनमात्रा, पंचमहाभूत,पांचज्ञानेंद्रियां,पांचकर्मेंद्रियां, उनके 5-5 देवता इन्हीं 6 वर्गों का यहां संकेत है।) यह सब अलग-अलग रहकर भूतों के कार्यरूप ब्रह्मांडकी रचना नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने भगवान की शक्तिसे परस्पर संगठित होकर एक सुवर्णवर्ण अंड की रचना की। वह अंड चेतनाशून्य अवस्था में 1000 वर्षोंसे भी अधिक समय तक कारणाब्धी जल में पड़ा रहा। फिर उसमें श्रीभगवानने प्रवेश किया।15. उसमें अधिस्ठीत होनेपर उनकी नाभिसे सहस्त्र सूर्यो के समान अत्यंत देदीप्यमान एक कमल प्रकट हुआ, जो संपूर्ण जीव- समुदाय का आश्रय था।उसी से स्वयं ब्रह्माजी का भी आविर्भाव हुआहैं।16. जब ब्रह्मांड के गर्भरूप जल में शयन करने वाले श्रीनारायण देव ने ब्रह्माजी के अंत:रण म