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जुलाई, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

8ब्रह्म उत्पत्ति

 श्री संकर्षणभगवान:_सनतकुमार आदि ऋषि भागवत पुराण_ श्रीमैत्रेयजीने कहा—विदुरजी! आप भगवद्भक्तोंमें प्रधान लोकपाल यमराज ही हैं; आपके पूरुवंशमें जन्म लेनेके कारण वह वंश साधु-पुरुषोंके लिये भी सेव्य हो गया है⁠। धन्य हैं! आप निरन्तर पद-पदपर श्रीहरिकी कीर्तिमयी मालाको नित्य नूतन बना रहे हैं ⁠।⁠।⁠१⁠।⁠। अब मैं, क्षुद्र विषय-सुखककी कामनासे महान् दुःखको मोल लेनेवाले पुरुषोंकी दुःखनिवृत्तिके लिये, श्रीमद्भागवतपुराण प्रारम्भ करता हूँ—जिसे स्वयं श्रीसंकर्षणभगवान्‌ने सनकादि ऋषियोंको सुनाया था ⁠।⁠।⁠२⁠।⁠। अखण्ड ज्ञानसम्पन्न आदिदेव भगवान् संकर्षण पाताललोकमें विराजमान थे⁠। सनत्कुमार आदि ऋषियोंने परम पुरुषोत्तम ब्रह्मका तत्त्व जाननेके लिये उनसे प्रश्न किया ⁠।⁠।⁠३⁠।⁠। उस समय शेषजी अपने आश्रय-स्वरूप उन परमात्माकी मानसिक पूजा कर रहे थे, जिनका वेद वासुदेवके नामसे निरूपण करते हैं⁠। उनके कमलकोशसरीखे नेत्र बंद थे⁠। प्रश्न करनेपर सनत्कुमारादि ज्ञानीजनोंके आनन्दके लिये उन्होंने अधखुले नेत्रोंसे देखा ⁠।⁠।⁠४⁠।⁠।सनत्कुमार आदि ऋषियोंने मन्दाकिनीके जलसे भीगे अपने जटासमूहसे उनके चरणोंकी चौकीके रूपमें स्थित कमलका स्पर्श

1index

 1. उद्धव और विदुर की भेंट 2.उद्धव जी द्वारा भगवान की बाल लीलाओं का वर्णन  3.भगवान के अन्य लीला चरित्रों का वर्णन  4.उद्धव जी से विदा होकर विद्युत जी का मैत्री ऋषि के पास जाना  5.विदुर जी का प्रश्न और मैत्री जी का सही क्रम वर्णन  6.विराट शरीर की उत्पत्ति  7.विदुर जी के प्रश्न  8.ब्रह्मा जी की उत्पत्ति  9.ब्रह्मा जी द्वारा भगवान की स्तुति  10.10 प्रकार की सृष्टि का वर्णन  11.मनवंतर आदि काल विभाग का वर्णन 12.सृष्टि का विस्तार  13.वाराह अवतार की कथा  14.दितिका गर्भधारण  15.जय विजय को सनकादिक का शाप।दिक का शाप।